सूचना
सूचना ज्ञान नहीं चिन्हो का अनुभव है गुरुजन व् ग्रन्थ आदि सूचनाओं के स्रोत हैं, ना की ज्ञान के। यह सूचनां केवल ज्ञान की ओर संकेत करती हैं जो केवल अपरोक्ष अनुभव से आता है। सूचना भाषा के माध्यम से आती है और पहले से संग्रहित ज्ञान के आधार पर उसका अर्थ निकला जाता है।
सूचना सत्य व् असत्य दोनों प्रकार की हो सकती हैं। और कुछ सूचना गुप्त भी रखी जाती हैं, उसे कूटबद्ध भी किया जा सकता है ताकि कोई और उसको ना पढ़ सके। कभी कभी सूचनाएं भ्रमित करने वाली भी हो सकती हैं आजकल के युग मैं असंखित माध्यम भ्रमित करने वाली सूचनाएं देते हैं उसमें उनका कोई भी स्वार्थ हो सकता है। सूचना प्रयोगों के द्वारा अनुभव और फिर ज्ञान मैं बदली जा सकती हैं।
प्रोयोगों के बाद ही सूचना का सत्य व् असत्य निर्धारण होता है। सूचना का प्रयोग करके सही ज्ञान लिया जा सकता है
सूचना का सत्यापन हमें अपने अनुभव के आधार पर करना होता है। यह कार्यक्रम भी केवल यह सूचना देता है की ज्ञान कहाँ से और कैसे लिया जा सकता है। ज्ञान केवन अनुभव से होता है बुध्दि के मान लेने से नहीं। बुद्धि से केवल बौद्धिक ज्ञान लिया जा सकता है जो मिथ्या होता है।
निराधार सूचना
जब सूचना किसी भी अनुभव के आधार पर नहीं होती तब वह मन गढंत होती है। ऐसे निराधार सूचना भ्रान्तिजनक होती है। जिससे कई मनो विकार आ जाते हैं। और बुद्धि मंद हो जाती है।
ऐसा व्यक्ति कुछ भी सोचने समज़ने के काबिल नहीं रहता।
जिस व्यक्ति को अपरोक्ष अनुभव के द्वारा ज्ञान नहीं हुआ ऐसे व्यक्ति की बुद्धि जड़ हो जाती है ऐसा व्यक्ति कुछ भी बोलता है, कुछ भी करता है और कुछ भी सोचता है, जो बस अर्थहीन होता है।
ऐसा व्यक्ति अपने आप को सही मानता है और उसको दम्भ हो जाता है।
उसको जब बताया जाता है की उसका ज्ञान झूठा है तो वह हिंसक हो जाता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन अज्ञानता से नष्ट हो जाता है।
अमान्य साधनों के उदाहरण
मान्यताये – डर या किसी इक्ष्छा की वजह से कुछ भी मान लेना।
धारणाये – अज्ञान से भरी कुछ बातें जो सत्य लगती हैं।
भ्रम – कुछ देख क़र कुछ समझने से इंसान भ्रमित हो जाता है, और उसके अज्ञान मैं वृद्धि होती है।
माता पिता, सम्बन्धी, मित्र आदि जो स्वयं अज्ञानी होते है उनकी वज़हें इंसान बचपन से ही झूठी मान्यताओं व् धारणाओं से भर जाता है। स्त्रियों के साथ यह विशेष रूप से होता है।
समाज मैं नेता किसी को भी गुलाम बनाने और अपने स्वार्थ पूरा करने के लिए सभी को जान बूझ क़र अज्ञान देते है। और साडी जनता को गुमराह करते हैं। विशेष्ज्ञ भी अपने क्षेत्र से बहार कुछ भी बोलते हैं वह असत्य ही होता है क्योनी वह बाकि जगह अज्ञानी होते हैं।
इसी तरह समाज के बड़े ओहदे वाले लोग , पैसे वाले लोग , किसी पद पर बैठे हुए लोग जो भी बोलते हैं उसको सत्य मान लिया जाता है जो की उनके अज्ञान से आता है।
काम आयु वाले लोग इसमें जल्दी फस जाते हैं।
इसी तरह विधालय और महा विद्यालय भी पुस्तकों के ज्ञान को ही ज्ञान का साधन मानते हैं जबकि उनसे कोई अनुभव नहीं आता।
आजकल तरह तरह की पुस्तके बी समाचार पत्र भी कुछ भी बताते है। जो केवल पैसा कमाने के लिए होते हैं। टीवी और इंटरनेट भी गलत सूचनाए देते हैं। इसी तरह सर्वमान्य सूचना ज्ञान नहीं होती। अध्यात्म मैं केवल अपने अनुभव को ही सत्य मन जाता है।
प्राचीन काल के ज्ञान की व्याख्या को भी सत्य मान लिए जाता है जबकि वह सूचना भर होता है।
उसका सत्यापन हमें स्वयं करना होता है।
किसी बड़े अदिकारी या संसथान की बात को भी लोग सत्य मान लेते हैं। जो अज्ञान के साधन हैं।
पुरानी परम्परों को भी बिना सत्यापन के मानना भी अज्ञान है।
इसी तरह असत्य को सत्य के साथ मिला कर भी लोगों को भर्मित किया जाता है।
अज्ञान का सबसे बड़ा साधन मतारोपण है जो बचपन से ही बच्चों मैं डाल दिया जाता है। जिसको हटाना बहुत मुश्किल होता है।
अज्ञान के परिणाम
अज्ञान की वजह से बुध्दि भ्रष्ट हो जाती है और व्यक्ति मूर्ख हो जाता है। लकिन वह अपने अआप को बहुत बुद्दिमान समझता है। और अपने शब्दों से आस पास भी मूर्खता ही फैलता है। ऐसा व्यक्ति लक्षहीन होता है और उसके जीवन मैं कोई आनंद नहीं होता। वह हमेशा दुखी रहता है।
यह व्यक्ति हमेशा गुलाम होता है। स्त्रियों के साथ ऐसा अक्सर होता है। उनको अज्ञानी ही रखा जाता है।
अज्ञानी लोग हिंसक और रोगी होते हैं। उनका हमेशा अपमान ही होता है। अज्ञान इंसान की विनाश करता है ।
ज्ञान ही इंसान को मुक्ति दिलाता है। और ज्ञानमार्ग ही इसका इलाज है।