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 ज्ञान – जीवन का अधारभूत

स्मृति में अनुभवों के सयोजन को ज्ञान कहते हैं। अनुभवों के बीच जो सम्बन्ध बनते हैं वह स्मृति छप जाते हैं जिसको हम ज्ञान कहते हैं और इन अनुभवों के सम्बन्ध बनने की प्रक्रिया को ज्ञान वृत्ति कहते हैं, जो लगातार चलती रहती है।

ज्ञानवृत्ति

ज्ञान वृत्ति जीव की उत्तरजीविता  के लिए अति आवश्यक है। इस ज्ञान की वज़ह से ही जीव इस संसार में जीवित रह पाता है। विकसित जीवों जैसे मनुष्य मे यह वृत्ति बहुत जटिल हो गयी है। इसमें न केवल उत्तरजीविता का ज्ञान हमें होता है वल्कि संबंधों , भावनाओ, बुद्धिमत्ता विषयों जैसे भाषा, कला, योग्यताओं जैसे गणित , विज्ञानं, दर्शन और आध्यात्मिक ज्ञान भी मनुष्यों को इस ज्ञान वृत्ति की जटिल संरचना से होता है।

संयोजन के प्रकार

१- अनुभव होते ही विषय का रूप देखा जाता है और उसका नाम रख दिया जाता है इसकोनाम – रूप सम्बन्ध कहते हैं।
२- जब कोई कर्म होते देखा जाता है तो हम उसके करने वाले का भी अनुभव कर पाते हैं इसको कहते हैं
करता – कर्म सम्बन्ध।
३- जब दो अनुभवों के बीच मैं सम्बन्ध बनते है तो इसको कारण – प्रभाव का सम्बन्ध कहते हैं।
जगत की वस्तुओं को मेरा और उसका होने का सम्बन्ध विषय – वस्तु का सम्बन्ध होता है।
४ – वस्तुओं और जीवों को अलग अलग वर्गों मैं डालना का सयोजन वर्गीकरण सम्बन्ध होता है।
५ – किसी भी वस्तु, वर्गों और जीवों की व्याख्या से उसका सार जानना।
६- किसी भी जटिल घटनाों या क्रियाओं के अनुभव से कोई संकल्पना या परिकल्पन ा से समृति मैं ज्ञान का बनना।
७ – मेरे लिए क्या सही है और क्या गलत है इसका ज्ञान होना विवेक कहलाता है। सही या गलत का निर्णय , वस्तुओं, स्थानों, जीवों और उनसे सम्बंधित ज्ञान का हो सकता है।
८- जगत मैं वस्तुओं व जीवों वर्गीकरण और फिर उनके अनुक्रम व उपविभाग बनना बुद्धि का सयोजन है।
९- ज्ञान का विश्लेषण करना या ज्ञान का भी ज्ञान लेना।

विशेषताएं

ज्ञान अनुभवों का संग्रह मात्र नहीं है। अनुभवों व उनकी संगृहीत संरचना का अर्थ जानना ज्ञान कहलाता है।
पिछले संगृहीत अनुभवों के ज्ञान मैं नए अनुभवों का ज्ञान जुड़ता जाता है इसको ज्ञान की वृत्ति का क्रमिक सयोजन कहते हैं, जिससे यह संरचना बहुत जटिल होती जाती है और यह सब स्मृति मैं संचित होता जाता है।

स्मृति के बिना ज्ञान संभव नहीं हो सकता। स्मृति के चले जाने पर भी ज्ञान चला जाता है।

जैसे की अनुभवों की संरचना ही ज्ञान के रूप मैं स्मृति मैं संगृहीत होती है तोअनुभव के न होने पर भी ज्ञान संभव नहीं होता।
ज्ञान तार्कित व सुसंगत होता है। उसमें गलतियां नहीं होती और वह रोज़ बदलता नहीं है। अगर ज्ञान मैं गलती हैं और वह रोज बदल रहा है तो वह अज्ञान कहलाता है।

ज्ञान के द्वारा आने वाली घटनाओ का पूर्वानुमान संभव है। और उनका परिणाम भी निर्धारित किया जा सकता है।

ज्ञान भी अपने आप मैं एक अनुभव है। जब ज्ञान वृत्ति चलती है तो उसका भी अनुभव होता है और उसका भी ज्ञान संगृहीत होता है। ज्ञान होने का और ज्ञान न होने का ज्ञान भी होता है।

ज्ञान योग्यता

ज्ञान की योग्यता यह है की वह सभी अनुभवों को जानने योग्य बना देता है। जिससे सभी अनुभवों को जाना जा सकता है। यह प्रक्रिया ज्ञान वृत्ति के रूप में चलती रहती है।

तीन तरह के अनुभव

ज्ञान के आधार पर अनुभवों को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है –
१- ज्ञात – जो सब जाना जा चूका है।
२- अज्ञात – जिसका अभी कोई अनुभव नहीं है लकिन जिसका किसी माध्यम से अनुभव किया जा सकता है। और ज्ञान की संरचना जो समृति में बनी हुई है उसको तार्किक रूप से उसके साथ समायोजित किया जा सकता है। ३
३- अगेय – इसके बारे में कभी भी जाना नहीं जा सकता। उसको वर्तमान ज्ञान की संरचना के साथ समायोजित नहीं किया जा सकता।

ज्ञान के प्रकार

ज्ञान मार्ग में ज्ञान को हम दो प्रकार में देख सकते हैं –

१-सकारात्मक ज्ञान – जब किसी वस्तु या जीव के गुणों को सकारात्मक रूप से बताया जाया है। और उनके अनुभवों को स्वीकारा जाता है।

२-नकारात्मक ज्ञान– इसमें कुछ न होने का अनुभव होता है।

ज्ञानमार्ग में नकारात्मक ज्ञान अति महत्वपूर्ण है। जो की अज्ञान का नाश करता है। और अज्ञान सकारात्मक ज्ञान के रूप में पाया जाता है। अनुभवों में जो ज्ञात है वह झूठ निकलता है और जो अगेय है वह सच निकलता है।

प्रयोग

अज्ञात को जानने के लिए हम वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करते हैं। सामान्य अनुभव प्राकर्तिक तरीके से अपने आप आते हैं जबकि प्रयोग ज्ञान प्राप्त करने का एक आयोजित प्रयास है। इन प्रयोगों से जो अनुभव आते है उसी के ज्ञान को हम मनुष्यों के जीवन में उपयोग करते हैं।

परिकल्पना

जब सीधे प्रयोगों से अनुभव नहीं होता तब हम परिकल्पनाएं करते हैं जो की एक काल्पनिक ज्ञान है। इसको हम धारणा कहते हैं। परिकपनाओं को अज्ञान नहीं माना जाता क्योंकि हम यह किसी कारण से करते हैं। यह परिकल्पनाएं प्रयोग करने में बहुत सहायक होती है। जैसे ऊर्जा।

सिद्धांत

सिद्धांत वह परिकल्पना है जो प्रयोगों के द्वारा समर्थित है लकिन अभी तक सत्य सिद्ध नहीं हुई हैं। बस कुछ प्रयोग बताते हैं की शायद यह परिकल्पना सच हो जैसे अणु परमाणु।

मिथ्याकरण

किसी सिद्धांत या परिकल्पना का उपयोग होने के लिए उसका मिथ्याकरण जरूरी है।

विज्ञान और तंत्र

विज्ञानं, प्रयोगों व सिद्धांतों द्वारा अस्तित्व का एक व्यवस्थित अध्यन है। जिसके द्वारा हम अज्ञात का अनुमान लगा सकते हैं।
भौतिक विज्ञानं, ज्ञान की वह शाखा है जो भौतिक जगत से सम्बंधित है। यह ज्ञान मार्ग शाखां हैं जिनका उपयोग मानव जीवन को बेहतर करने के लिए किया जाता है।
तकनीक या तंत्र बिना ज्ञान के भी उपयोग किये जा सकते हैं। जिनको मानव की इक्षापूर्ती के लिए किया जाता है। तकनीक या तंत्र ज्ञान होने का प्रमाण नहीं होता।

ज्ञान का ज्ञान

ज्ञान मार्ग मे इसका मनन करने से , ज्ञान और अज्ञान का भेद जाना जाता है।

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