ज्ञान मार्ग ज्ञानार्जन का एक व्यवस्थित प्रयास है। अज्ञान का नाश ही ज्ञान हैं। अज्ञान का मतलब है, हमारे अंध्विश्वास , मान्यताएं , और धारणाएं। जो हमने अपने चित्त मैं संग्रह किये हुए है। इस जन्म से और पता नहीं कितने जन्मों से। इन सब से मुक्ति ही ज्ञान है। ज्ञान मार्ग एक जीवन शैली भी है। जिससे मनुष्य का जीवन बदल जाता है। वह सरल वह सात्विक हो जाता है। ज्ञान सबसे बड़ी शक्ति है जो परिवर्तन लाती है। और यह परिवर्तन हमें अपनी परम अवस्था तक पहुंचा देता है।
ज्ञानमार्ग में क्या जाना जाता है ?
ज्ञान मार्ग में मुख्य रूप से तीन तरह का ज्ञान होता है। पहला ज्ञान स्वयं का ज्ञान। मैं क्या हूँ मेरा मूल तत्त्व क्या है। जिसको हम आत्मज्ञान कहते हैं। दूसरा जगत का ज्ञान। जो भी अनुभव हो रहे हैं। वह क्या है। उनका सत्य क्या है। कैसे हो रहे हैं। क्यों हो रहे है। जिसको हम माया का ज्ञान कहते हैं। और तीसरा अस्तित्व का ज्ञान। यह सम्पूर्णता क्या है जिसे हम ब्रह्म ज्ञान भी कहते है।
ज्ञान अर्जित करने की विधि
ज्ञान मार्ग में ज्ञान के लिए जो विधि अपनायी जाती है उसमें है सटीक परिभाषा , शुद्ध भाषा, सटीक भाषा। ताकि शब्दों के अर्थ न बदले। बोलने और सुनने मैं कोई भी गलती न हो। इसके बाद ज्ञान से साधन तय किये जाते है। कि वह कौन से साधन है जिनसे ज्ञान मिलेगा। उसके बाद सत्य के मापदंड तय किये जाते है। कि क्या सत्य होना चाहिए और क्या असत्य होना चाहिए ? इसके साथ बहुत तार्किक और संतोष जनक उत्तर मिलते हैं हमारे प्रश्नो के। इसके अलावा हम प्रयोग भी करते हैं क्यंकि ज्ञान मार्ग प्रायोगिक भी है और सैद्वांतिक भी है। क्योंकि बुद्धि को कुछ सहायता लगती है मोडल, परिकल्पनाएं और रेखाचित्र बनाकर। समझने का प्रयास किया जाता है। यह सब बहुत आवश्यक है। इसके बिना कोई ज्ञानमार्ग नहीं है।
गुरु
गुरु सबसे आवश्यक है। ज्ञानमार्ग मैं बिना गुरु के कोई प्रगति नहीं होगी। हमारे कई गुरु हो सकते हैं। कई ज्ञानीजन गुरु हो सकते है। गुरु कौन है? जो आपसे ज्यादा जनता है। जिसकी बात आप समझ सकते हैं। जो आपको प्रिय है। ज्ञान मार्ग प्रगति शील मार्ग नहीं है। या तो ज्ञान होगा या नहीं होगा। और यह केवल गुरु ही कर सकता है।
साधक
जो गुरु की सहयता से ज्ञान खोज रहा है उसको हम साधक का नाम देते हैं। साधक वह है जिसमें अज्ञान से मुक्ति की ईक्षा है। और उसकी साधना ज्ञान लेना है।
लक्ष्य
ज्ञान मार्ग का मुख्य लक्ष्य है अज्ञान का नाश। इसके साथ ही जो भी अनावश्यक है उसका भी त्याग ज्ञानी कर देता है। जो भी मूर्खता पूर्ण था, जो भी अँधेरे मैं चलता था , जो बिना सोचे समझे हो रहा था , चाहे वह कर्म हो , या विचार हो , चाहे वाणी हो, उन सारी अशुद्धियों का त्याग ज्ञान मार्ग मैं होता है। जो ज्ञान होते के साथ ही अपने आप होने लगता है। और ज्ञान मार्ग जीवन शैली बन जाता है, ज्ञान ही पृष्ठ भूमि हो जाता है ज्ञानी की, उसकी दिनचर्या मैं , उसके आचार विचार मैं दिखाई पड़ता है।
विशेषताएं
ज्ञान मार्ग की सबसे अच्छी विशेष्ता है की यहाँ किसी भी चीज़ की आती नहीं की जाती। ना यहाँ घंटों बैठना है , ना शरीर को तोडना मरोड़ना है , ना सांस को रोकना है और ना विचित्र विधियां करनी हैं। कुछ भी अति नहीं है यहाँ पर साधारण है। प्राकर्तिक वह शुद्ध है ज्ञानमार्ग । साधक पर किसी तरह का दवाव नहीं है परन्तु अनुशाशन आवश्यक है। क्योंकि यहाँ साधना है नहीं बड़ा आरामदायक है। जो कठिन कार्य है वह अज्ञान का नाश ही है। और अज्ञान का नाश होने पर कुछ साधना नहीं है ज्ञान मार्ग मैं। और अज्ञान का नाश भी प्रयास से नहीं होता , बुद्धि से होता है। कुछ करने से नहीं, कुछ पाने से नहीं , छोड़ने से होगा जिसनेब कोई प्रयास नहीं लगता। ज्ञान मार्ग पर कोई मान्यता थोपी नहीं जाती। कोई अंध विशवास थोपा नहीं जाता। कुछ माने को मजबूर नहीं किया जाता। उलटे यहाँ पर सभी मान्यता तोड़ दी जाती है नाश कर दी जाती है।
सारे विशवास समाप्त कर दिए जाते हैं। यहाँ पर सोचने की , समझने की, बोलने की , अपना जो चाहे वह करने की स्वतंत्रता है। यहाँ पर आपको गुलाम बना कर नहीं रखा जाता। यह करो वार्ना आप इस मार्ग के नहीं हो ऐसा कोई कभी नहीं कहेगा। ज्ञान हो गया सब हो गया अब आप उड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। भोजन आदि के कोई नियम नहीं हैं। बस अति नहीं करनी है। विशेष किस्म के कपडे नहीं पहनने पड़ेंगे। बाल नहीं कटवाने पड़ेंगे , मुंडन नहीं करना पड़ेगा , शमशान की रख और इस तरह की चीज़ों का सामना नहीं करना पड़ेगा, न भ्रमचार्या है न विवाह है न किसी तरह की कोई शर्त है। जो मनुष्य की जीवन है प्राकर्तिक वैसा ही रहना काफी है। बिना किसी विशेष नियम के ज्ञान संभव है। कोई विशेष भाषा जानना आवश्यक नहीं है।पर भाषा शुद्ध होनी चाहिए। ज्ञान मार्ग मैं कोई पूजा पाठ नहीं कोई कर्म कांड नहीं होता। कोई मंदिर नहीं है ना पंडित है। बस गुरु है और शिष्य है। और ज्ञान है। ज्ञान किसी की संपत्ति नहीं है , इसको खरीदा नहीं जा सकता और ना बेचा जा सकता है बस दिया जा सकता है।
ज्ञान मार्ग किसी के नियंत्रण मैं नहीं है ना यहाँ कोई सर्वे सर्वा ह। अगर कोई यह कहता है तो उससे बड़ा मुर्ख कोई नहीं है। यह सबका है, सब के लिए है और सभी जान सकते हैं।
ज्ञान सबका जनम सिद्ध अधिकार है। यहाँ कोई विद्यालय नहीं है। कोई महा विद्यालय नहीं है। कोई बड़ी बिल्डिंग नहीं है। कोई उपाधि नहीं दी जाती। की आप महाज्ञानी हो गए , परम हंस हो गए आदि आदि। यहाँ पर सब छोटे हो जाते हैं सब का नाश हो जाता है और अहम् भाव पूरी तरह से नष्ट हो जायेगा। यहाँ अहंकार को बढ़ाया नहीं जाता नाश कर दिया जाता है। यहाँ व्यक्ति का कोई महत्तव नहीं केवल ज्ञान का महत्व है।
ज्ञान मार्ग गृहस्थ, सन्यासी, लिंग, जति, साम्प्रदायिकता , देश से मुक्त है। यह सरे विश्व का है।
यहाँ क्या मिलता है?
ज्ञान मार्ग पर कुछ भी नहीं मिलता। उलटे सब कुछ खो जाता है। हमारे पास जो है सब चला जायेगा उल्टा शरीर भी छिन जायेगा। व्यक्ति भी नस्ट हो जायेगा। मनुष्य भी नहीं रहेगा। उससे भी मुक्ति हो जाएगी। यहाँ सब धो दिया जाता है, सब साफ़ कर दिया जाता है, सब हटा दिया जाता है ।
ज्ञान मार्ग का कोई सांसारिक लाभ नहीं है। उलटे सब सांसारिक वस्तुए चली भी जा सकती हैं। ज्ञान मार्ग मई कोई सुधरता नहीं, कोई बिगड़ता भी नहीं। यहाँ कोई नैतिकता नहीं पढाई जाती , यहाँ पर तो बस खरी खरी सुना दी जाती है। क्या सत्य है यहाँ बता दिया जाता है जो करना है फिर कर सकते हैं।
ज्ञान मार्ग आत्मसुधार के लिए नहीं है। यहाँ हम बुरे से अच्छे व्यक्ति नहीं हो जायेंगे। ना शरीर मैं और स्वस्थ मैं कोई सुधार होगा।जो जैसा चल रहा है वैसा चलेगा , केवल ज्ञान पर जोर दिया जाता है।
बुद्धि होने पर सब अपने आप सुधर जाता है। यहाँ पर कोई इक्षा पूरी नहीं होती।यह मार्ग इक्षा पूर्ती के लिए नहीं है, यहाँ तक इक्षाओं का त्याग भी करना पड़ेगा। यहाँ पर सब छिन जाता है। क्योंकि जो जमा है वह ही तो अशुद्धि है वह ही तो अज्ञान है। जिसके पीछे हम भाग रहे हैं वह ही तो हमारा पिंजरा है। वही हमारी वेडी है। यहाँ वही काट दी जाती है। कभी कभी इसके अच्छे प्रभाव भी दिखते हैं क्योंकि बुद्धि बहुत बढ़ जाती है। ज्ञान मार्गी के आचार विचार मैं स्पस्टा दिखायी पड़ती है। इसलिए कभी कभी लगता है की कुछ सुधार हुआ है। लकिन ज्ञान मार्ग का यह उद्देश्य नहीं है। इस मार्ग मैं बुद्धि का शुद्धिकरण भी हो जाता है।
विनाशक मार्ग
ज्ञान मार्ग एक विनाशकारी मार्ग है। यहाँ पर निरंतर अशुद्धि को हटाया जाता है। यहाँ अज्ञान को हटाया जाता है। जो भी पुराना , सड़ चुका है और अनावश्यक है उस सब को हटा दिया जाता है। यहाँ पर पुराना सब कुछ हट जाता है। बुध्दि पूरी तरह से बदल जाती है। जो भी यह सोचकर इस मार्ग पर आ रहा है की कुछ मूल जायेगे वह पूरी तरह से असंतुष्ट ही होगा। यह मार्ग परिवर्तन के लिए नहीं अज्ञान को हटाने के लिए है। अगर कुछ गैरजरूरी है वह अपने आप नस्ट हो जाता है। यह मार्ग हमें हमरे परम तक पहुंचता है।
सावधानियां
इस मार्ग पर साधक को कुछ सावधानियां रखनी पड़ती है। जैसे कभी कभी यहाँ पर साधक को घमंड आ जाता है। वह समझता है की मैं बहुत ज्ञानी हो गया बाकी लोगों को नीचे समझता है। जबकि वह ही उल्टा नीचे गिर जाता है। यह बिना गुरु के होता है। यहाँ पर कुछ लोग इक्षा पूर्ती के लिए आते हैं और कुछ सांसारिक लाभ , लोभ , भोग के पाने की कामना से आते हैं उनको कुछ नहीं मिलता उलटे इन सबसे विरक्ति मिलती है। कुछ लोग छोटी छोटी कामना पूर्ती के लिए इस मार्ग पर आते हैं जबकि उनको पूरा अस्तित्व ही मिलता है , उनको इस मार्ग पर नहीं आना चाहिए।
सबके लिए नहीं है
जिन व्यक्तियों मैं गुण नहीं हैं उन लोगों को यहाँ असफलता ही मिलेगी। यह मार्ग कोई आरामदायक अनुभव नहीं देता। जीवन का संघर्ष जीव के लिए वैसे ही रहता है बस वह सब ज्ञान के प्रकाश मैं होता है। ज्ञान मार्ग मैं आने के लिए अधिकारी होना आवश्यक है और यह गुरु ही निर्धारित करा है है की ज्ञान मार्ग किसके लिए है वार्ना हमारा समय ही बर्बाद होता है।ध्यान क्या है ? हर व्यक्ति हर समय पूर्ण परमात्मा है। लकिन वह स्वरुप भूल गया है। उसकी याद आ जाना ही ध्यान है। या इसको हम साक्षी भाव भी कहते है। जो हर समय उपस्थित तत्त्व है वह ही भ्रम है। उसके प्रति हर समय सजक रहना ही साक्षी भाव या ध्यान है। इसके आभाव मैं सुख दुःख दुःख के अनुभव हर समय होते रहते रहते हैं। जैसे जब हम स्वपन मैं होते हैं उस समय भी हम ही होते हैं। लकिन वहां जाग्रत अवस्था की स्मृति के कारन वहां कुछ भी विचित्र देखते हैं। लकिन जागने पर पता चलता है की वह सरे अनुभव मिथ्या हैं लकिन मई उसकी उपास्थि हमेशा रहती है। लकिन उठने पर हमने पाया की जिस आधार पर वह स्वपन प्रतिबिब हो रहा था वह निरंतर विद्यमान है। इस ही तरह जाग्रत आस्था में भी यह मेरे होने का पर्दा हमेशा मैं विधिमान है। इन तीनो आस्थाओं मैं जो सत्ता निरंतर विधमान है वह ही परमात्मा है। सुसुप्त अवस्था मैं कोई मन और जगत का कोई अनुभव नहीं होता तो वहां स्मृति मैं भी कोई संसार भी नहीं पड़ते जागने पर मैं जनता हूँ की मैं ही तीनो अवस्थों में हूँ ।