साधन
वह विधि या योग्यता जिसके माध्यम जिससे ज्ञान प्राप्त होता है उसे ज्ञान का साधन कहते हैं। साधन २ प्रकार के होते हैं
१ – मान्य साधन- वह साधन जिनको ज्ञानी जान , ऋषि मुनि , बुद्धिमान लोग, वैज्ञानिक सही मानते हैं।
२- अमान्य साधन – जिन साधनो को स्वीकार नहीं किया जाता। जिनको अज्ञानी साधन मानते हैं।
मान्य साधन
मान्य साधन प्रभावी होता है। उससे ज्ञान प्राप्त करने की बहुत अधिक सम्भावना होती है। वोह विश्वसनीय होता है उसके ऊपर विशवास किआ जा सकता ह। हमेशा ज्ञान देने मैं सफल होता है। निर्विवाद और पूरी तरह से स्पस्ट होता है और पूरी तरह से पर्याप्त होता है।
अमान्य साधन
अमान्य साधन अप्रभावी होता है उसमें ज्ञान पाने की सम्भावना लगभग शून्य होती है। उसपर संदेह होता है। असंगत होता है और कभी कभी उससे ज्ञान होने का धोखा होता है। यह अपर्याप्त होते हैं मतलब ज्ञान पाने के लिए और भी कुछ करना होता है।
ज्ञानमार्ग पर ज्ञान के साधन
ज्ञान मार्ग पर ज्ञान के दो ही साधन मान्य होता हैं।
१- अपरोपक्ष अनुभव
२- तर्क
अपरोक्ष अनुभव
अपरोक्ष अनुभव – यह सीधा अनुभव होता है जो भौतिक और अभौतिक इन्द्रियों के माध्यम से सीधा प्राप्त होता है। यह उपकरणों के माध्यम से भी आ सकता है। लकिन अंतिम माध्यम इन्द्रियां ही होते हैं। यह स्वयं का अनुभव होता है। यह अनुभव वर्तमान मैं होता है , भूतकाल या भविष्य मैं नहीं। कुछ लोग जाग्रत अवस्था के अनुभव को भी अपरोक्ष अनुभव मानते हैं। नीद या स्वप्न अवस्था के अनुभव को साधन नहीं मानते।
तर्क
तर्क या अनुमान लगाना भुद्धि की एक क्षमता है। यह मनुष्य मैं एक मानसिक योग्यता है। जिसमें अनुभवों का भेद बताना , विवेक लगाना , परिणाम निकलना , सत्ये असत्य निकलना, नैतिक अनैतिक क्या है , सही या गलत क्या है , इसको जानने की योग्यता तार्किक बुध्दि मैं होती है। यह एक प्रकार की चित्त वृत्ति होती है। किसी मैं कम होती है। किसी मैं ज्यादा होती है। जिसमें अधिक होती है उनको बुद्धिमान कहा जाता है। तर्क हमेशा ठोस होना चाहिए अर्थात हमारे पुराने अपरोक्ष अनुभवों के आधार पर होना चाहिए
प्रमाण या साक्ष्य
अपरोक्ष अनुभव के साथ तर्क का प्रोग करने से ज्ञान प्राप्त होता है।
जो हमारे अपरोक्ष अनुभव से अनहि आता वह सब कुछ अज्ञान, कल्पना, धारणा और भ्रम आदि की श्रेणी मैं आता है।
चित्तशुद्धि
हमारे सारे अनुभव और तर्क चित्त की ही वृत्ति से आते हैं। इसलिए ज्ञान प्राप्त करने के लिए चित्त ही एक साधन है। बुद्धि को तेज करना अति आवश्यक है जो चित्त की शुद्धि द्वारी बुद्धि को बढ़ाना साधक के लक्ष्य है।
पारंपरिक मान्य साधन और उनका खंडन
ज्ञान प्राप्त करने के कुछ पारम्परिक साधन मने गए हैं जैसे-
१- अपरोक्ष अनुभव , प्रत्यक्ष – जो सीधा अनुभव हो रहा ह।
२- तर्क या अनुमान – अनुभव के आधार पर जो अनुमान लगाया जाता है।
३- गुरु
४- श्रुति, आगम या शब्द – वेद, उपनिषद, गीता आदि लिखित ग्रन्थ है।
५- उपमा
६- अनुपलब्धि या अभाव – किसी चीज के न होने का ज्ञान।
७-अर्थापत्ति – एक घटना से दूसरी घटना का ज्ञान होना।
अपरोक्ष अनुभव व् तर्क सभी मार्गों मैं सर्व मान्य हैं तभी हम इनका उपग्योग ज्ञान मार्ग मैं करते हैं ।
प्रश्नों के प्रकार
ज्ञान मार्ग मैं ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रश्नो को करना अति आवश्यक है। इन प्रश्नो के उत्तेर हम अपरोक्ष अनुभव व् तर्क के द्वारा ढूढ़ते हैं। जो होते जो होते हैं –
१- क्या, २-क्यों , ३-कैसे , ४-कब, ५-कहाँ , ६-कौन , ७- कितने।
प्रश्नों के अपेक्षित उत्तर
१- क्या – यहाँ हमें मूलभूत परिभाषा देनी होती है।
२- क्यों- यहाँ हमें किसी का कारण बतान है।
३- कैसे – यहाँ प्रक्रिया बतानी है।
४- कब – यहाँ पर समय बताना है।
५- कहाँ – यहाँ पर स्थान बताना है।
६- कौन – यहाँ पर व्यक्ति बताना है।
७- कितने – यहाँ पर संख्या बतानी है।
ज्ञान मार्ग मैं यह बहुत महहतव्पूर्ण है की किस प्रश्न का उत्तर क्या होना चाहिए। इससे ज्ञान पाना बहुत सुलभ हो जाता है।