औचित्य
किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति के मन मैं यह प्रश्न उठेगा कि सत्य तो व्यक्तिनिष्ठ हैं और ऐच्छिक हैं तो सबसे अधिक निश्चित सत्य तक कैसे पहुंचे ? इसके लिए हमें ऐसे मापदंड चुनने होते हैं जो कि सभी सन्दर्वों मैं उपयोगी हों और सबसे ज्यादा कठोर हों, जो स्थिति बदलने पर बदले नहीं। उससे ही सबसे निश्चित ज्ञान हो सकता हैं। इसलिए ज्ञान मार्ग पर सत्य का बहुत कठोर मापदंड अपनाया गया जाता हैं।
जो परिवर्तनशील हैं वह असत्य हैं और जो अपरिवर्तनीय हैं वह सत्य हैं।
यह तत्त्व जानने मैं बहुत उपयोगी हैं। जो बदल जाता हैं वह अस्तित्व मैं नहीं हैं केवल वह कुछ समय दिखने का भ्रम हो रहा हैं
जो बदल जाये उसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता।
तत्व
तत्त्व वह हैं जो नहीं बदलता जिसको किसी वास्तु से हटाया नहीं जा सकता। जिस पदार्थ या सार कि वह वास्तु बनी हुई हैं। तत्त्व किसी भी वास्तु कि न्यूनतम व्याख्या हैं। तत्त्व का शाब्दिक अर्थ हैं बस होना मात्र। वह जिसके द्वारा किसी का होना संभव हैं।
जैसे लकड़ी कि मेज़ से लकड़ी को नहीं हटाया जा सकता और जैसे घड़े से मट्टी को नहीं हटाया जा सकता। उसका केवल नाम, रूप , गुण, आकर आदि बदला जा सकता हैं।
नामरूप
जो भी बदलता हैं उसको नाम रूप कहते हैं। वह वास्तव मैं नहीं हैं , वह केवल तत्त्व पर आरोपित किया गया गया हैं। यह नाम रूप इन्द्रियों व् चित्त के द्वारा रचा गया हैं।
स्वतंत्र अस्तित्व
केवल तत्त्व का ही स्वतंत्र अस्तित्व हैं नाम रूप का नहीं। जैसे सारे आभूषणों का मूल तत्व स्वर्ण हैं आभूषण के नाम रूप बदलते हैं। इसी तरहा लहरों का मूल तत्त्व पानी हैं। जो कभी नहीं बदलता केवल नाम रूप बदलते हैं। इसलिए वही सत्य हैं बाकि सब असत्य हैं।
सत्य और परिवर्तन
दैनिक जीवन मैं भी हम सत्य के यह मापदंड प्रयोग मैं लाते हैं भले ही हमें पता न हो। जैसे बदलते हुए नाम, स्वाभाव और रूप बहुत विश्वसनीय नहीं होते और हम उन्हें असत्य मानते हैं। स्थायित्व को हम सत्य मानते हैं। कभी कभी हमें अपनी इन्द्रियों पर भी भ्रम होता हैं जैसे रेत मैं पानी का दिखना।
सत्य और अनित्य
हमरी बुद्धि भी कहती हैं जो बदल रहा हैं उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। जो जितनी जल्दी बदलता हैं वह उतना ही असत्य लगता हैं। और जो स्थायी हैं और जीवन के लिए उपयोगी हैं वह पूरी तरह से सत्य लगता हैं। यह मनुष्य का स्वाभाव हैं।
इसके लिए हम टमाटर के सड़ने का प्रयोग करते हैं। समय कि गति बढ़ाने से वह बहुत जल्दी गायब हो जाता हैं तब हमें उसकी सत्यता झूठ मालूम पड़ती हैं।
वैज्ञानिक ही बस परिवर्तन को नापते हैं। सत्य वह भी नहीं बता सकते। अतः सब परिवर्तन मिथ्या होते हैं। बस वह इन्द्रियों का खेल मात्र हैं। हो सकता हैं वह जीवन के काम का हो फिर भी वह असत्य हैं।
स्थायित्व अनुभव को हम सत्य मन लेते हैं जो पूरी तरह मनगढंत हैं।
स्मृति
देर तक रुकने वाली चीज स्मृति के कारण सत्य प्रतीत होती हैं। अगर स्मृति हटी दी जाये तो किसी भी वास्तु का कोई अस्तित्व नहीं हैं। अगर वास्तु बहुत जल्दी बदलती हैं वह स्मृति मैं कोई चाप नहीं छोड़ती तो वह असत्य मालूम होती हैं। जैसे स्वपन , वह समरी से रचे जाते हैं लकिन उनका अनुभव स्मृति मैं नहीं रहता तो हम उनको असत्य कहते हैं।
विसत्य
जो वस्तु जीवन के लिए उपयोगी हैं और थोड़ी देर रह जाती हैं उसको हम सत्य मानते हैं , लकिन ऐसे सत्य को विसत्य कहते हैं।
जीवन सत्य- असत्य पर निर्भर नहीं होता वह चलता रहता हैं और जो चीज़ उसके लिए आवश्यक होती हैं वह उसके लिए सत्य होती है। जीवन भी लकिन ज्ञान के लिए सत्य का मापदंड मन जाता हैं वार्ना मिथ्या या असत्य का ज्ञान होता हैं।
मानव जीवन के परे
ज्ञान के लिए हमें मानव जीवन के परे जाना होता है। इसलिए जो जीवन के लिए उपयोगी हैं उसी को सत्य मानना मूर्खता हैं। ज्ञान मार्ग उत्तरजीविता पर निर्भर करता हैं। जीवन मिथ्या होने पर भी ज्ञानमार्ग मैं कोई बाधा नहीं आती और न जीवन मैं ज्ञान होने पर। मृत्यु के भय से कोई भी मापदंड स्वीकार करने वाले लोग भौतिक वादी कहलाते हैं। उनके लिए जो आखों से दिखता और जो जीवन को सुखी, समृद्ध करता हैं वही सत्य होता हैं।
यह व्यक्ति ज्ञान मार्क के लिए उपयुक्त नहीं होते।
जो इन बातों से आगे बढ़ना चाहता हैं वह ही ज्ञान मार्ग मैं आगे बढ़ सकता हैं।