ज्ञानवृत्ति के कारण सभी अनुभव स्मृति मैं छपते जाते हैं। और उनका वर्गीकरण भी हो रहा है जो है सत्य और असत्य के बीच मैं। और कुछ मापदंडों के आधार पर अनुभव सत्य और असत्य होते हैं। सभी मापदंड व्यक्तिनिष्ठ होते हैं और प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुसार सत्य या असत्य चुनता है और कर्म करता है।
आवश्यकता
सत्य और असत्य के बीच वर्गीकरण इसलिए आवश्यक है क्योंकि इससे व्यक्ति जान जाता है की जो अनुभव बार बार होते हैं उनके अनुसार काम करने से इक्षित फल मिलते हैं। कर्म निर्धारित करने के लिए व्यक्ति का सत्य व् असत्य जानना आवश्यक है। उत्तरजीविता के लिए, जहाँ कर्मों आवश्यकता होती है वहां सत्य और असत्य के माप दंड बहुत कठोर हो जाते हैं।
सत्य का यथार्थ
सभी व्यक्ति के लिए सत्य और असत्य के मापदंड अलग अलग होते हैं। क्योंकि सभी की आवश्यकता अलग अलग होती है। साथ ही वही सत्य उसी व्यक्ति के लिए किसी अन्य स्थिति मैं असत्य हो सकता है। कोई भी सत्य केवल तब तक उपयोगी होता है जब तक वह कर्म के लिए आवश्यक है।
अस्तिस्त्व मैं न कुछ सत्य है न असत्य , उपयोगिता के आधार पर उसका वर्गीकरण हो जाता है। जीवित रहने के लिए यह वृत्ति विकसित और बुद्दिमान जीव मैं पायी जाती है।
परम सत्य जाने के लिए कौन से मापदंड जरूरी होते हैं। यह ही ज्ञानमार्गी का उद्देश्य है। उसके लिए सही मापदंड निर्धारित करने होंगे।
मानदंडों के प्रकार
परम सत्य को जानने के लिए मापदंडो को दो भागो मैं विभाजित किया जाता है।
१- हीन मापदंड – जो अनावश्यक हैं , बेकार हैं।
२- उच्च मापदंड – जो विश्वसनीय हैं और काम के हैं।
हीन मानदंड
हीन मापदंडो मैं आते हैं माता पिता , जो अज्ञान के कारण झूठ बोलते हैं। सम्बन्धी, मित्र , अनजान व्यक्ति आदि की बातों और इनके व्यव्हार से सत्य का पता नहीं लगाया जा सकता। सम्पूर्ण समाज, बड़े लोग , पैसे वाले लोग और नेता, सरकारी लोग पूरी तरह से अविश्वसनीय हैं। उनका आचरण धोखा देना है न की सत्य बताना। इसी तरहा पुस्तके न सत्य बताती है न असत्य, उनपर आँख बंद करके विश्वास करना मूर्खता है।
सभी लोग जो सत्य बताते हैं उनपर भी आंख बंद करके मान लेना भी अंधविश्वास है।
पुराणी मान्यताएं भी सत्य हों यह जरूरी नहीं। कुछ भी कल्पना करना और भ्रम मैं रहना हीन मापदंड हैं।
इक्छाएं भी सत्य को विकृत कर देती हैं। कुछ लोग अपने स्वार्थ के कारण अफवाएं फैलते रहते हैं जो कुछ मंदबुद्धि लोग उसको सत्य मान लेते हैं।
सूचना के माध्यम जैसे टीवी , अखवार , पत्रिका , इंटरनेट हीन मापदंड है, इनसे भी सत्य नहीं मिलता असत्य जरूर मिलता है।
उच्च मानदंड
अपना स्वयं का अनुभव और तर्क उच्च मापदंड है। अगर कोई भी अनुभव अपने को बार बार दोहराता है तो उसपर विश्वास किया जा सकता है। अपने अनुभव व् तर्क के द्वारा जो सही लगता है वः उच्च मापदंड है।
इसके अलावा कुछ व्यक्ति विश्वसनीय होते हैं वे जो कहते हैं वोह वह ही करते हैं और वः सत्य निकलता है।
अगर कोई अनुभव समय और स्थान मैं बदलता है तो उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता। अचल रहने वाले अनुभव ज्यादा विश्वसनीय है और वे उच्च मापदंड हैं।
निश्चितता
अगर मापदंड बहुत कठोर हैं तो सत्य और असत्य का भेद जानना आसान हो जाता है और कर्म भी आसान हो जाते हैं। इस संसार मैं सफलता , सुख और सफलता मापदंडों की श्रेष्ठा पर निर्भर है।
ज्ञान मार्ग पर सफलता कठोर मापदंडो के चुनाव पर निर्भर है।
ज्ञानमार्ग पर सत्य के मानदंड
१- अपरिवर्तनीय – जो नहीं बदलता वो सत्य है।
२- परिवर्तनीय – जो बदलता है वह असत्य है।
विसत्य
समाज मैं व्यवहारिकता के लिए सत्य के दुसरे मापदंड काम मैं लाये जाते हैं जिनको विसत्य कहते हैं। जो सत्य नहीं होते लकिन व्यवहारिकता के लिए सत्य मान लिए जाते हैं। यह विसत्य सापेक्ष होता है किसी विशेष परिस्थितियों मैं ही सत्य मन जाता है। जो उस परिस्थिति की आवश्यकता अनुसार होता है। शिक्षा प्रदान करने के लिए कभी कभी झूठ भी सच बता कर बता दिया जाता है। जो सत्य को सरल बना देता है। सांसारिकता मैं भी विसत्य काम आता है।
सरलता
सत्य बहुत ही साधारण और सरल होता है जबकि असत्य जटिल व् कठिन होता है। सरल होने के कारण अज्ञानी उसको अस्वीकार कर देते हैं। वह उनका मतारोपण होता है जो उनको बता दिया गया कि इसको जानना बहुत कठिन होता है। सत्य याद नहीं रखना होता झूठ याद रखना होता है।
विशुद्ध तार्किक सत्य
बहुत से विषयों मैं विशुद्व तार्किक सत्य उपयोग किया जाता है, जो बुध्दि कि तार्किक क्षमताओं को तेज करने कि लिए बहुत उपयोगी है परन्तु ज्ञान मार्ग मैं इसका उपयोग नहीं होता, वहां पर तर्क अनुभव आधारित होते हैं।
गणितीय सत्य
गणितीय सत्य केवल गणित के सवाल हल करने के लिए उपयोगी है।
सत्य के संदर्भ
हर सन्दर्भ मैं सत्य अलग अलग होता है। संसार मैं एक तरह का सत्य प्रयोग होता है , दर्शन शास्त्र मैं एक तरह का और ज्ञान मार्ग मैं एक तरह का। सत्य स्थितियों या चित्त अवस्थाओं पर निर्भर करता है।
बहुस्तरीय ज्ञान
शिक्षायें चरण बद्ध तरीके से दी जाती है क्योंकि शिष्य अंतिम सत्य तक पहुंचने मैं असमर्थ होता है। उसकी बुद्धि का विकास धीरे धीरे ही होता है। इसको बहुस्तरीय ज्ञान कहते हैं , किन्तु ज्ञान मार्ग बहुस्तरीय नहीं होता, यहाँ पर सीधा सत्य बता दिया जाता हैं। कभी कभी परम सत्य पहले बता दिया जाता हैं और धीरे धीरे नीचे कि तरफ आते हैं। जहाँ सत्य विसत्य हो जाता हैं और विसत्य असत्य हो जाता हैं। कभी कभी निचले स्तरों पर जाने कि आवश्यकता अभी नहीं होती यह साधक कि बुद्धि के आधार पर तय होता हैं।