ज्ञान का आभाव अज्ञान है। अन्धविश्वास, निराधार धारणाये मान्यताएं और तरह तरह के भ्रम जो मन मैं जमा हो गए हैं सब अज्ञान है। जो भी बिना सोचे समझे मान लिया गया है वह सब अज्ञान है। जिसका सत्य का निर्धारण किये बिना मान लिया गया है बिना बुद्धि विवेक का उपयोग किये बिना सही मान लिया गया है सब अज्ञान है। ज्ञानमार्ग मैं ऐसी मान्यताएं व् धारणाएं जो ज्ञान के मान्य साधनो पर आधारित नहीं हैं वह सब अज्ञान है।
अज्ञान के कारण
अज्ञान का सबसे बड़ा कारण माता पिता , सम्बन्धी और मित्र हैं। समाज सबसे बड़ा कारण है जो की अपना मतारोपण बचपन से ही शुरू कर देता है। मनुष्य जो सबसे बुद्दिमान प्राणी है पैदा होते ही अज्ञानी होना शुरू हो जाता है उसकी बुद्धि का विकास रुक जाता है।
अज्ञान का बड़ा कारण मंदबुद्धि होना है। यह न जान पाना की क्या सत्य है क्या असत्य है जो सुना मान लिया बिना बुद्धि का प्रयोग किये। जो पहले से ही मान्यताओं से भरा होता है और मंद बुध्दि होता है उसमें दम्भ अपने आप आ जाता है। अज्ञान का एक लक्षण है की वह अपने आप को सबसे बड़ा ज्ञानी समझता है और अपने आप को ही सत्य समझता है।
और वह यह ज्ञान समाचार पत्र, टीवी , इंटनेट, और इधर उधर से सुनके लेता है। और ऐसा व्यक्ति अहंकारी हो जाता है।
कभी कभी बुरी संगत , अशिक्षा के आभाव और किसी गुरु के न होने के कारण भी व्यक्ति अज्ञानी रह जाता है।
शिक्षा के कारण ज्ञान नहीं मिलता लेकिन बुद्धि तेज हो जाती है।
अज्ञान के परिणाम
अज्ञान के बहुत भयानक परिणाम होते हैं जिसको ज्ञान नहीं होता वह अंत मैं दुःख भोगता है। जीवन नारकीय हो जाता है। ऐसा व्यक्ति मूर्ख रह जाता है। दूसरों के व्यंग का शिकार होता है, दूसरों की गुलामी करता है। अज्ञानी का व्यव्हार बहुत विचित्र सा हो जाता है, भाषा असभ्य हो जाती है , चाल चलन अच्छा नहीं होता इसलिए ज्ञानी लोग उसे दूर ही रखते हैं।
अज्ञानी लोग हिंसक भी होते है क्योंकि उनको परिस्थिति से निकलने का कोई ज्ञान नहीं होता, दूसरों से साथ साथ अपनी भी हानि करते हैं। ऐसे लोग बहुत कष्ट झेलते हैं और उनसे बहार होने का उनके पास कोई उपाय नहीं होता। ऐसे लोग लक्ष्यहीन होते हैं उनको क्या करना है उनको पता नहीं होता उनके ऊपर जो मतारोपण थोप दिया जाता है , वो वही करते हैं।
शिक्षित लोग भी लक्ष्य हीन ही होते हैं न उनका स्वय का कोई लक्ष्य होता है वो दूसरों की इक्छाओं को ढो रहे होते हैं। आध्यात्मिक लक्ष्य का नाम तो उन्होंने सुना ही नहीं होता। जीवन अस्त व्यस्त होता है। ऐसे व्यक्ति निर्धन होते हैं या कुछ अवैध साधनो से धन कमाते हैं जो की निर्धनता से भी बुरा है। उनका जीवन पूरी तरह से अनुपयोगी होता है।
अज्ञान बनाम अज्ञानी
हमें अज्ञान से दूर रहना है न की अज्ञानी से। वह तो स्थितियों का शिकार है अज्ञानी व्यक्ति के लिए केवल दया करुणा होनी चाहिए। उनका तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए। बिना बताये किसी को भी उसका अज्ञान नहीं बताना चाहिए। हम सब भी थोड़े बहुत अज्ञान के साथ जीवन बिताते हैं कुछ काम कुछ ज्यादा।
अज्ञान की पहचान
अपने अज्ञान की पहचान हम कैसे कर सकते हैं ? स्वयं और दूसरों का अवलोकन करके। यह भी वही लोग कर सकते हैं जिनमें थोड़ी बहुत चेतना है। या गुरु की शरण मैं चले जाएँ जो उनको देखते ही बता देता हैं की इनमें कितना अज्ञान है।
जब हम अज्ञान से ज्ञान की ओर जाते हैं तो काफी सरे फल मिलते हैं जीवन पर। उनको सम्हालने की भी कला आनी चाहिए। गुरु की शरण में जाने से यह सब आसान हो जाता है।
अज्ञान के लक्षण
बहुत सरे लक्षणों को देख कर बताया सकता है कि कौन कितना अज्ञानी है। अज्ञानी व्यक्ति निराधार मान्यतों व् अंधविश्वासों की वज़ह से भ्र्म में रहते हैं। सत्य पर संदेह करते हैं झूठ पर विश्वास करते हैं। कुछ भी बताने से उनकी बुद्धि नहीं चलती।
ऐसे लोगों में हीनभावना होती है जो यह सोचते हैं कि लोग मुझे आदर नहीं देते, सत्कार नहीं करते , तो फिर वे लोग बहुत तरीकों से अपने आप को बड़ा दिखाना चाहते हैं जो कि वह होते नहीं।
अज्ञानी जिद्दी किसम के होते है जो हर बात पर वाद विवाद करते हैं। कुछ भी माने को तैयार नहीं होते। अगर उनकी बात गलत सिद्ध हो जाये तो वह हिंसक हो जाते हैं, आक्रामक हो जाते हैं। उनकी भाषा अपमान जनक होती है कभी भी अच्छी तरह से बात नहीं करते। गलियां देना , मज़ाक करना और बहुत ही सस्ती किस्म कि उनकी भाषा होती है।
अज्ञानी व्यक्ति अक्सर भयभीय होते हैं, क्योंकि उनको कोई जानकारी नहीं है। और नयी जगह और नए लोगों से डर जाते है। कुछ अज्ञानी तो प्रश्न भी नहीं कर पाते। गुरुजनो से घ्रणा करते हैं जो उनको ज्ञान देने चाहते है। वह सांप्रदायिक होते है।
यह लोग कुछ भी बताया जाये उसको चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं।
अक्सर स्त्रियां ऐसी होती हैं। जो बहुत ज्यादा डर कर रहती हैं। ऐसे लोगों में बाल बुध्दि होता हैं और वोह भोले होते हैं। ऐसे लोग ज्ञान कि जगह मान्यताओं को सत्य मानते हैं। और दूसरों से उसकी पुस्टि चाहते है। अपने अज्ञान का नाश नहीं होने देना चाहते। दूसरों पर अपना मतारोपण करते हैं और उनको अपनी मान्यता मानने को कहते हैं। उनकी बात मानने वाले लोगों को अपना दोस्त और बाकी को अपना दुश्मन मानते हैं।
इनमें साधकों के गुणों का आभाव रहता हैं।
अफवाओं पर विश्वास करते हैं। किसी विद्वान कि उपस्थिति से डर जाते हैं अज्ञानियों के साथ रहने में सुरक्षित महसूस करते हैं।
अज्ञानियों में शारीरिक व् मानसिक विकार होते हैं। वे पागल जैसे हो जाते हैं। उनमें बहुत सी बुरी आदतें पड़ जाती है।
अच्छा अज्ञान
कुछ अज्ञानी अच्छे भी होते हैं। आज्ञाकारी और मेहनती होते हैं।
कुछ अच्छे लोगों कि पशुता विपरीत परिस्थिओं में सामने आ जाती हैं। अंत में उनको दुःख ही मिलता हैं।
अबोधता
अज्ञान और अबोधता में फर्क होता है। अबोधता वोह हैं जिसको कोई ज्ञान नहीं होता। अज्ञान भी नहीं होता। इसलिए उसमें दोनों के लिए सामान क्षमता होती हैं।
वह परिस्थितयों के हिसाब से ज्ञानी और अज्ञानी हो सकता हैं।
यह उसके स्वयं के गुणों और मतारोपण पर निर्भर करता हैं।
मूल अज्ञान
मूल अज्ञान स्वयं के सत्य को न जानना हैं। जैसे कि में कौन हूँ, मेरा सत्य क्या हैं , मेरा स्वरूप क्या हैं।
जगत कि वास्विकता का अज्ञान , जैसे जगत क्या हैं , मैं इस जगत में क्यों हूँ , इस जीवन का सत्य क्या हैं।
ऐसा व्यक्ति यह मंटा हैं कि यह भौतिक जगत ही सत्य हैं और मैं एक व्यक्ति या मनुष्य हूँ।
वह यह मंटा हैं कि उसके जीवन का लक्ष्य अपनी उत्तरजीविता और अपनी इक्षाओं कि पूर्ती करना हैं नैतिक व् अनैतिक तरीके से। वह भोग विलास व् सुख दुःख मैं लिप्त रहता हैं। और मर जाते हैं।
ज्ञान मार्ग मूल अज्ञान दूर करता हैं और फिर बुद्धि सही दिशा मैं चलती है।