ज्ञान अज्ञान है
ज्ञान अनुभव द्वारा होता हैं , और सभी अनुभव असत्य है। हमें केवल असत्य का ही अनुभव होता हैं। ज्ञान अनुभवों का सयोजन हैं। इसलिए ज्ञान भी असत्य हैं। जो भी अज्ञान हैं उसके शुद्दिकरण ज्ञान हैं। सही ज्ञान घटने कि किर्या हैं इसमें जो भी अज्ञान जमा किया गया हैं उसको हटा दिया जाता हैं। बुद्धि का शुद्दिकरण कर दिया जाता हैं। सब त्याग दिया जाता हैं।
ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। केवल जो मान्यताएं , धारणाएं आदि चित्त पर भर गए हैं उनका नाश किया जाता हैं। इसलिए ज्ञान मार्ग एक नकारात्मक मार्ग हैं। इसमें अंत मैं कुछ भी प्राप्त नहीं होता सब छीन लिया जाता हैं। इस तरह ज्ञान मार्ग पर ज्ञान नहीं मिलता अज्ञान का नाश होता हैं।
चित्त पर निर्भरता
जो भी ज्ञान होता हैं चित्त के माद्यम से होता हैं। ज्ञान चित्त या बुद्धि पर निर्भर करता हैं। बुद्धि स्वयं मिथ्या हैं , सीमित हैं इसलिए ज्ञान भी सीमित होता हैं। जो बुद्धि को तृप्त करता हैं उसको ही ज्ञान मन जाता हैं। जैसे जैसे अज्ञान का नाश होता हैं चित्त विकसित होता हैं और अज्ञान घटता जाता हैं।
ज्ञान मार्ग मैं जो ज्ञान होता हैं वह मूल तत्व कि ओर ले जाता हैं। अनावश्य कम होता जाता हैं। मूलतत्व ज्ञान और अवधारणाओं से रहित होता हैं। शुद्ध होता हैं। जिसमें न कोई ज्ञान हैं और न अज्ञान हैं, न कोई दर्शन हैं और न विज्ञानं हैं , मूल तत्व मैं जानने योग्य कुछ भी नहीं हैं।
सही ज्ञान आने पर सम्पूर्ण अस्तित्व कि आज्ञेता मालूम पड़ती हैं। और जहाँ आज्ञेता हैं वहां बुद्धि को अपना संघर्ष छोड़ देना पड़ता हैं। बुध्दि से कोई ज्ञान भी नहीं होता , यह केवल अज्ञान का नाश करने के लिए होती हैं , यह एक विशेष तरह कि बुद्धि हैं जो नकारात्मक होती हैं और स्वयं को शुद्ध करती हैं।
अंत मैं ज्ञानमार्ग, अज्ञेयवाद और रहस्यवाद कि ओर ले जाता हैं जो सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद जानने को कुछ भी नहीं रह जाता।
अज्ञेयवाद
आज्ञेवाद ज्ञान होने के बाद ज्ञान का भी त्याग कर देता हैं। यह सभी अवधारणाओं, दर्शनों, विचारों , परम्परों आदि से मुक्त हो जाता है। यह किसी का भी पक्ष नहीं लेता और न कोई मार्ग को बताता हैं। वह सभी कुछ त्याग देता हैं।
आज्ञेवादी को सम्पूर्ण स्वतंत्रता मिलती है।
आज्ञेवाद ज्ञान होने के बाद ज्ञान का भी त्याग कर देता हैं। यह सभी अवधारणाओं, दर्शनों, विचारों , परम्परों आदि से मुक्त हो जाता है। यह किसी का भी पक्ष नहीं लेता और न कोई मार्ग को बताता हैं। वह सभी कुछ त्याग देता हैं।
आज्ञेवादी को सम्पूर्ण स्वतंत्रता मिलती है।
आज्ञेवादी कुछ जानने का प्रयास नहीं करता बस प्रश्न पूछता रहता है। आज्ञेवादी उदेश नहीं देता सीधा ज्ञान देता है , मतलब सम्पूर्ण विनाश, उसके बाद मौन आता है, शांति आती है। ज्ञानमार्ग व्यक्ति को मुक्त बना देता है, वैरागी बना देता है, अत्यधिक बुद्धिमान बना देता है। उसकी बुध्दि की सारी अशुद्धी दूर हो जाती है। ज्ञानमार्गी निश्चिन्त हो जाता है , उसको मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। वह साक्षी भाव मैं आ जाता है।